अग्निपथ योजना का बहुत विरोध हो रहा है। जो समर्थन कर रहे हैं उनसे सवाल पूछा जा रहा है कि इन शर्तों पर क्या आप अपने बच्चों को फौज में भेजेंगे? तो इस सवाल के जवाब में एक प्रतिप्रश्न है - अब से पहले जब ये नियम नहीं थे, क्या आप खुद फौज में भर्ती होने गए थे? या आपने पुराने नियमों के तहत ही अपने बच्चों को फौज में भेजा? यदि नहीं तो आपके सवाल में ईमानदारी नहीं है।
एक दुसरा प्रश्न है, फौज से बाईस से ले कर पचीस वर्ष की उम्र में बाहर आया युवा बेरोजगार क्या करेगा? उसके पास कोई शैक्षणिक या व्यावसायिक योग्यता नहीं होगी क्योंकि योग्यता हासिल करने वाला वह उम्र तो उसने फौज में लगा दिया।
तो इसका उत्तर साथ लग कर ढूंढिए। मेहनतकश युवा दो प्रकार के हैं - १. वह जिन्हें लगता है और आत्मविश्वास है कि वे शैक्षणिक या व्यावसायिक क्षेत्रों में कामयाब हो सकते हैं, २. जिन्हें ऐसा नहीं लगता। तो प्रथम वर्ग के कितने छात्रों को फौज में सिपाही के तौर पर भर्ती होने के लिए जाते हुए आपने देखा है? जो आपका मूल प्रश्न है, वह उन्हीं छात्रों से संबंधित है जो शैक्षणिक या व्यावसायिक सफलता का आत्मविश्वास रखते हैं। जो दूसरा वर्ग है उसमें भी आत्मविश्वास है परन्तु वह किसी अन्य प्रकार का है। वो बाहुबल पर भरोसा करने वाले हैं। इसी दूसरे वर्ग से युवा सेना में सिपाही के रूप में जीवन की शुरूआत करते हैं। तो जितने अग्निवीर चार वर्षों की सेवा के दौरान योग्य पाए जाएंगे, वे सेवानिवृत्त नहीं होंगे, बल्कि वे स्थाई नियुक्ति पा जाएंगे। बहुत से अन्य केंद्रीय पुलिस बल और राज्य पुलिस में आरक्षण का लाभ हासिल कर के स्थाई नियुक्ति पा जाएंगे।
तो अग्निवीर योजना से नुकसान किसको होगा? उन्हीं को जो न शैक्षणिक या व्यावसायिक सफलता का आत्मबल रखते हैं और जो चार वर्षों में फौज में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर पाने का आत्मबल भी नहीं रखते। तो ऐसों के लिए आपके मन में सहानुभूति है?